
एक ठो लवण्डी अपन अन्ध्रा ब्वायफ्रेण्ड हे कहल : “कास तु महिन देखे सेक्तो मै कतना सुग्घुर बातु ।”
ब्वायफ्रेण्ड : अतनै सुग्घुर रते तो आ“खि हुइल वलान मोरलग् छोरतैं ।“ कमिनी अन्धरा हुँ । चुतिया नाई हुँ “ ।
- जितेन्द्र चौधरी
- जितेन्द्र चौधरी

एक ठो लवण्डी अपन अन्ध्रा ब्वायफ्रेण्ड हे कहल : “कास तु महिन देखे सेक्तो मै कतना सुग्घुर बातु ।”
ब्वायफ्रेण्ड : अतनै सुग्घुर रते तो आ“खि हुइल वलान मोरलग् छोरतैं ।“ कमिनी अन्धरा हुँ । चुतिया नाई हुँ “ ।
- जितेन्द्र चौधरी
- जितेन्द्र चौधरी
जब मनै इ ढरटिम पहिला पैला ट्याकट टबसे वाकर जिनगि जिना संघर्स सुरु हुइट । आपन जिनगि जियक लाग संघर्स कर भिरठ् । संघर्स कर्ना क्रम म समय ओ परिस्ठिटि लेख वाकर
का कमि रहे हेर्ना उ नजर भुलाडेलो ।साँझके सिटरैना उ नहर भुलाडेलो । दुई मुटुके मिलन हुइना गुरही चोकमे,मोर घरे ओर अइना उ डगर भुलाडेलो । टँु मोर मैया प्रेमके बहियाँमे
जहर डंगौराजान पहिचान, मनैनके जवानी हो ।जिन्गी सँचमे, समुन्डरके पानी हो । मन लग्ना पिना, करठै बहाना मनो,टेन्सनमे खैना पिना, केकरो बानी हो । छोरना बा सब, आइ जब